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सिंघल राठौड़

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सिंघल राठौड़ राठौड़ अपने को राम के कनिष्ठ पुत्र कुश का वंशज बतलाते हैं। इस कारण वे सूर्यवंशी हैं। वे पारम्परिक रूप से राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र मारवाड़ में शासन करते थे। इनका प्राचीन निवास कन्नोज में बदायू था। जहाँ से सीहा मारवाड़ में ई. सन् 1243 के लगभग आया। राजस्थान के सम्पूर्ण राठौड़ो के मूल पुरुष राव सीहा जी माने जाते है जिन्होंने पाली से राज प्रारम्भ किया उनकी छतरी पाली जिले के बिटु गांव में बनी हुई है।  सीहा के पहले , पुत्र आस्थान ने खेडगढ़ पर जहा पहले डाभी और गोहील वंश का राज था को ध्वस्त किया तथा उनके वंशज चूण्डा ने मण्डोर पर और उसके पौत्र जोधा ने जोधपुर बसाकर वहाँ अपनी राजधानी स्थापित की। मुग़ल सम्राटों ने अपनी आधी विजयें ‘लाख तलवार राठोडान‘ अर्थात एक लाख राठोड़ी तलवारों के बल पर प्राप्त की थी क्योंकि युद्ध के लिए 50000 बन्धु बान्धव तो एक मात्र सीहाजी के वंशज के ही एकत्रित हो जाते थे। राठौड़ो का विरुद रणबंका है अर्थात वे लड़ने में बांके हैं। 1947 से पूर्व भारत में अकेले राठौड़ो की दस से ज्यादा रियासते थी और सैकड़ो ताजमी ठिकाने थे जिनमें मुख्य जोधपुर, मा...

Deora Chauhan History

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देवड़ा चौहान राजवंश की एक प्रसिद्ध खांप है | प्रसिद्ध चौहान वंश की चौबीस शाखाएँ हैं, उनमें एक शाखा का नाम देवड़ा है। इस शाखा के चौहानों का राजस्थान में सिरोही पर राज्य था। अपनी अनेक विशेषताओं और ख्यातियों का धनी आबू पर्वत सिरोही रियासत का ही अंगभूत था। आबूगिरि पर स्थापत्य कला के नयनाभिराम जैन मन्दिर हैं। सिरोही राज्य का क्षेत्रफल 1964 वर्ग मील था। देवड़ा राजवंश की उत्पति- सिरोही की देवड़ा शाखा से भिन्न देवड़ा शाखा का प्रादुर्भाव सांभर के चौहान शासक के देवराज नाम के एक पुत्र से हुआ था। इस शाखा का आबूगिरि के वि.सं.1225 और 1229 के प्राप्त दो शिलालेखों में वर्णन है। समयावधि के पश्चात् चौहानों की यह प्रथम शाखा नाम शेष हो गई । वर्तमान देवड़ा शाखा का निकास चौहानों की सोनगिरा शाखा से हुआ है। जालौर के शासक भानसिंह अर्थात् भानीजी के एक पुत्र का नाम देवराज था। उसकी संतति वाले देवड़ा कहलाये। इस देवराज के पुत्र विजयराज ने मुसलमानों को पराजित कर मणादर (बड़गांव) पर विजय प्राप्त की। जालौर पर अलाउद्दीन खिलजी के इतिहास प्रसिद्ध प्रथम आक्रमण के समय जालौर के शासक कान्हड़देव सोनगिरा की सहायतार्थ ये देवड़ा श...

राठौड़ वंश:-

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  राजपूतों के इतिहास में राठौड़ों का विशेष स्थान है। संस्कृत अभिलेखों, ग्रंथों आदि से राठौड़ों को राष्ट्रकूट लिखा है। कहीं-कहीं रट्ट या राष्ट्रोड भी लिखा है। राठौड़ राष्ट्रकूट का प्राकृत रूप है। चिन्तामणि विनायक वैद्य के अनुसार यह नाम न होकर एक सरकारी पद था। इस वंश का प्रवर्तक राष्ट्रकूट (प्रांतीय शासक) था। राठौड़ अथवा राठौड एक राजपूत गोत्र है जो उत्तर भारत में निवास करते हैं। राठौड़ अपने को राम के कनिष्ठ पुत्र कुश का वंशज बतलाते हैं। इस कारण वे सूर्यवंशी हैं। वे पारम्परिक रूप से राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र मारवाड़ में शासन करते थे। इनका प्राचीन निवास कन्नोज में बदायू था। जहाँ से सीहा मारवाड़ में ई. सन् 1243 के लगभग आया। राजस्थान के सम्पूर्ण राठौड़ो के मूल पुरुष राव सीहा जी माने जाते है जिन्होंने पाली से राज प्रारम्भ किया उनकी छतरी पाली जिले के बिटु गांव में बनी हुई है।  सीहा ने पहले पाली, पुत्र आस्थान ने खेडगढ़ पर जहा पहले डाभी और गोहील राजपूतो का राज था तथा उनके  वंशज चूण्डा ने मण्डोर पर और उसके पौत्र जोधा ने जोधपुर बसाकर वहाँ अपनी राजधानी स्थापित की। मुग़ल सम्राटो...

Kachwaha Dynasty ( कछवाहा वंश )

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  Kachwaha Dynasty ( कछवाहा वंश ) ऐसी मान्यता है कि कछवाहा रामचंद्र के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंशधर थे  सूर्यमल्ल मिश्रण के अनुसार किसी कूर्म नामक रघुवंशी शासक की संतान होने से ये कूर्मवंशीय कहलाने लगे और भाषा से उन्हें कछवाहा कहा जाने लगा, जो सूर्यवंशीय क्षत्रिय है दुल्हराय – ढूढ़ाड़ राज्य की स्थापना संस्थापक – दुल्हेराय कुलदेवी – जमुवाय माता आराध्य देवी – शिलादेवी डॉ J.P स्ट्रेटन के कथन के अनुसार ढूढ़ाड़ शब्द से धूल भरा रेगिस्तान अभिव्यंजित है, जो दूर-दूर तक अपने शुष्क भू-भाग लिए फैला हुआ है दुल्हराय ( दुलेराम ), ग्वालियर नरेश सोड़देव के पुत्र थे सोड़देव के पुत्र दुल्हराय का विवाह मौरा के चौहान शासक रालपसी की कन्या सुजान कँवर के साथ हुआ था   10 वी शताब्दी में दौसा नगर पर दो राजवंश चौहान राजवंश और बड़गुर्जर राज्य कर रहे थे, चौहान राजवंश ने अपनी सहायता के लिए ग्वालियर से अपने जमाता दुल्हराय को आमंत्रित किया दुल्हराय ने कूटनीति से बढ़गुर्जरों को हराकर ढूढ़ाड़ का शासन अपने पिता सोड़देव को सौंप दिया। सोड़देव ने 996 ई. से 1006 ई. तक तथा दुल्हराय ने 1006 ई. से 1035 ई. तक ढूढ़ाड़ पर शासन किया ...

गहलोत, सिसोदिया वंश

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सिसोदिया/ गहलोत भारतीय राजपूत जाति में पाया जाने वाला एक गोत्र है, जिसका राजस्थान के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। सिसोदिया वंश (sisodiya dynasty) के शासक मेवाड़ पर शासन करते थे। मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ थी। सिसोदिया वंश के प्रमुख शासक रावल बप्पा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप इत्यादि थे। बप्पा रावल  ने चित्तौड़ के प्रसिद्ध दुर्ग पर अधिकार कर मेवाड़ में गुहिल वंश अथवा गहलौत वंश की स्थापना की। सन् 556 ई. में जिस गुहिल वंश की स्थापना हुई, बाद में वही गहलौत वंश बना और इसके बाद यह सिसोदिया राजवंश के नाम से जाना गया। सिसोदिया शब्द की उत्पत्ति शिसोदा गांव से हुई। तत्कालीन समय में राव रोहितास्व भील को पराजित कर  करणसिंह  ने आधिपत्य कर लिया और उसी गांव के आधार पर सिसोदिया शब्द प्रचलन में आया। सिसोदिया वंश के शासक अपने को  सूर्यवंशी  कहते थे। सिसोदिया वंश के शासक  मेवाड़  पर शासन करते थे। मेवाड़ की राजधानी  चित्तौड़  थी। अपनी विजयों के उप्लक्षय में  विजयस्तम्भ  का निर्माण  राणा कुम्भा  ने चित्तौड़ में करवाया। खतोली का युद्ध  1518...