Kachwaha Dynasty ( कछवाहा वंश )
Kachwaha Dynasty ( कछवाहा वंश )
ऐसी मान्यता है कि कछवाहा रामचंद्र के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंशधर थे सूर्यमल्ल मिश्रण के अनुसार किसी कूर्म नामक रघुवंशी शासक की संतान होने से ये कूर्मवंशीय कहलाने लगे और भाषा से उन्हें कछवाहा कहा जाने लगा, जो सूर्यवंशीय क्षत्रिय है
दुल्हराय – ढूढ़ाड़ राज्य की स्थापना
संस्थापक – दुल्हेराय
कुलदेवी – जमुवाय माता
आराध्य देवी – शिलादेवी
डॉ J.P स्ट्रेटन के कथन के अनुसार ढूढ़ाड़ शब्द से धूल भरा रेगिस्तान अभिव्यंजित है, जो दूर-दूर तक अपने शुष्क भू-भाग लिए फैला हुआ है
दुल्हराय ( दुलेराम ), ग्वालियर नरेश सोड़देव के पुत्र थे सोड़देव के पुत्र दुल्हराय का विवाह मौरा के चौहान शासक रालपसी की कन्या सुजान कँवर के साथ हुआ था
10 वी शताब्दी में दौसा नगर पर दो राजवंश चौहान राजवंश और बड़गुर्जर राज्य कर रहे थे, चौहान राजवंश ने अपनी सहायता के लिए ग्वालियर से अपने जमाता दुल्हराय को आमंत्रित किया
दुल्हराय ने कूटनीति से बढ़गुर्जरों को हराकर ढूढ़ाड़ का शासन अपने पिता सोड़देव को सौंप दिया। सोड़देव ने 996 ई. से 1006 ई. तक तथा दुल्हराय ने 1006 ई. से 1035 ई. तक ढूढ़ाड़ पर शासन किया
दुल्हेराय ने 1137 ई में दौसा पर अधिकार कर ढूढाड क्षेत्र में कछवाहा वंश की नींव रखी, दौसा कछवाहों की आरम्भिक राजधानी थी दौसा के पश्चात कछवाहा नरेशो ने जमवारामगढ़ को दूसरी राजधानी बनाया
कोकिल देव- इसने 1207 ई में मीणाओं से आमेर छीनकर आमेर को राजधानी बनाई जो जयपुर की स्थापना तक इनकी राजधानी रही।
झंडा एवं राज्य चिन्ह ( Flag and State Symbol )
जयपुर रियासत का झंडा पंचगंगा ( नीला पीला लाल हरा और काला) था इस झंडे के बीच सूर्य की आकृति है, यहां के राज्य चीन में सबसे ऊपर राधा गोविंद का चित्र है
नीचे राज्य का मूल मंत्र “यतो धर्मस्ततो जय:” लिखा है जिसका अर्थ है- ‘जहां धर्म है वहां सत्य की सदा जय होती हैं’!
कछवाहा वंश के शासक ( Ruler of Kachwah dynasty )
हणुदेव
जान्हड देव
पजवन देव
मालसी
बिजल देव
रामदेव
किल्हल
कुंतल
जुणसी
उदयकरण – इन्होने आमेर में शेखावाटी को मिलाया। इनके प्रपौत्र नरू द्वारा कछवाहा की नरूका शाखा चली। इनके अन्य वंशज बाला के पौत्र शेखा के वंशज शेखावत कहलाये।
नरसिंह
उदरण
चन्द्रसेन
पृथ्वीराज – 1503 – 1527 ई – इन्होनें महाराणा सांगा की तरफ से खानवा के युद्ध मे बाबर के विरुद्ध भाग लिया था “बारह कोटडियो” की स्थापना के कारण कछवाहा वंश के इतिहास में इनका नाम प्रसिद्ध है।
पूर्णमल – 1527 – 1533 ई
भीमदेव – 1533 – 1537 ई
रतन सिंह – 1537 – 1548 ई –इनके चाचा सांगा ने सांगानेर की स्थापना की
भारमल 1548 – 1574 ई - राजस्थान के प्रथम राजपूत शासक थे जिन्होंने सबसे पहले अकबर मुगलों के साथ वैवाहिक संबंध कायम किए!
हरखूबाई:- भारमल की पुत्री, इतिहास में बेगम मरियम उज्जमानी के नाम से प्रसिद्ध हुई। इनका विवाह 1562 ई. में अकबर के साथ सांभर में हुआ। जहाँगीर इन्ही का पुत्र था।जोधा बाई एक ‘उपाधि’नाम है जो अकबर एवं जहाँगीर की पत्नियों में से मुख्य पत्नी को प्रदान किया जाता था।यह उपाधि के आसिफ द्वारा निर्देशित फिल्म मुगल-ए-आजम के बाद में अधिक प्रचलित हुई है।
भारमल की उपाधियाँ :- राजा, अकबर ने अमीर-उल-उमरा की उपाधि दीं।
भगवन्त दास 1574 – 1589 ई )
मानसिंह 1589 – 1614 ई:- मानसिंह का जन्म 6 दिसंबर 1550 को हुआ भगवंतदास की मृत्यु के बाद 14 नवंबर 1589 में आमेर का शासन उसके दत्तक पुत्र मानसिंह ने सम्भाला आमेर राजस्थान का प्रथम राज्य था जिसने मुगलों के साथ सहयोग और समर्पण की नीति अपनाई
अकबर नें मानसिंह को राजा की उपाधि दी। अकबर के नवरत्नों में से एक मानसिंह को अकबर ने उस का सर्वोच्च 7000 का मनसब प्रदान किया था | मानसिंह ने बंगाल एवं बिहार का सूबेदार बनकर मुगल सत्ता के विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया हिंदुस्तान का सबसे बड़ा मनसब 7000 और सबसे छोटा 10 मनसब|
भावसिंह 1614 – 1621 ई
मिर्जा राजा जयसिंह 1621- 67 ई
रामसिंह – 1667 – 1689 ई
बिशन सिंह – 1689 – 1699 ई
सवाई जयसिंह द्वितीय 1699 – 1743 ई
सवाई ईश्वरी सिंह 1743-50 ई
महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम 1750-68 ई
महाराजा पृथ्वीराज – 1868 – 1878 ई
सवाई प्रताप सिंह 1778-03 ई
जगत सिंह द्वितीय 1803-18 ई
सवाई जयसिंह तृतीय – 1818- 1835 ई
महाराजा रामसिंह द्वितीय 1835-80 ई
महाराजा माधोसिंह द्वितीय 1880-1922 ई
मानसिंह द्वितीय 1922-49 ई
सवाई भवानी सिंह
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