THE ROYAL CLANS OF RAJPUTS

 एक राजपूत (संस्कृत से राजा-पुत्रा, "एक राजा का पुत्र") पश्चिमी, मध्य, उत्तरी भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों के पितृवंशीय कुलों में से एक के सदस्य है तथा भारत की योद्धा वर्गों के वंशज होने का दावा करती हैं। 

6वीं से 12वीं शताब्दी के दौरान राजपूत प्रमुखता से उभरे। 20 वीं शताब्दी तक, राजपूतों ने राजस्थान और सुराष्ट्र की रियासतों के "भारी मात्रा" में शासन किया, जहां सबसे अधिक रियासतें पाई गईं। 
राजपूत खासकर उत्तर, पश्चिम और मध्य भारत में अत्यधिक संख्या में निवास करते हें एवं इनकी आबादी राजस्थान, सौराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, जम्मू, पंजाब, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और बिहार में पाई जाती है। 
राजपूतों के कई प्रमुख उपखंड हैं, जिन्हें वंश या वामश के रूप में जाना जाता है, जो सुपर-डिवीजन जाति से नीचे का चरण है। इन वंशों ने विभिन्न स्रोतों से वंश का दावा किया, और राजपूत को आमतौर पर तीन प्राथमिक वंशों में विभाजित माना जाता है:
सूर्यवंशी सौर देवता सूर्य से वंश, चंद्र देव से चंद्रवंशी, और अग्निदेव से अग्निवंशी बताते हैं। कुछ-प्रचलित वंश में यदुवंशीराजवंशी, और ऋषिवंशी शामिल हैं। 

विभिन्न वंशों के इतिहास बाद में इसी पेज पर क्रमबध तरीके से और सटीक सत्य जानकारी से उपलब्ध करवा दिया जाएगा। वंश विभाजन के नीचे छोटे और छोटे उपखंड होते हैं: kul, shakh ("शाखा"), khamp या khanp ("टहनी"), और nak ("टहनी टिप")। एक कूल के भीतर विवाह आम तौर पर नही किया जाता है। 
कुल राजपूत वंशों में से कई के लिए प्राथमिक पहचान के रूप में कार्य करता है, और प्रत्येक कुल एक परिवार देवी, कुलदेवी द्वारा संरक्षित है। 
राजपूत, जो छत्तीस शाही क्षत्रिय वंशों, पवित्र ग्रंथों, पुराणों और दो महान भारतीय महाकाव्यों, "महाभारत" और "रामायण" में उल्लिखित हैं, को तीन मूल वंशों (वंश या vhashas) में वर्गीकृत किया गया है। : 
सूर्यवंशी: या रघुवंशियों (सौर वंश के कुल), मनु, इक्ष्वाकु, हरिश्चंद्र, रघु, दशरथ और भगवन श्रीराम के माध्यम से उतरा। 
चंद्रवंशी: या सोमवंशी (चंद्र वंश के वंशज), ययाति, देव नौशा, पुरु, यदु, कुरु, पांडु, युधिष्ठिर और कृष्ण के माध्यम से अवतरित हुए। यदुवंशी वंश चंद्रवंशी वंश की एक प्रमुख उप-शाखा है। भगवान कृष्ण एक यदुवंशी पैदा हुए थे। पुरुवंशी वंश चंद्रवंशी राजपूतों की एक प्रमुख उप-शाखा है। महाकाव्य महाभारत के कौरव और पांडव पुरुवंशीय थे। 
अग्निवंशी: अग्निपाल (अग्नि वंश के कुलों), अग्निपाला, स्वाथा, मल्लन, गुलसुन, अजपाला और डोला राय के वंशज हैं। इनमें से प्रत्येक वंश या वंश कई कुलों (कुला) में विभाजित है, जिनमें से सभी एक दूरस्थ लेकिन सामान्य पुरुष पूर्वज से प्रत्यक्ष संरक्षण का दावा करते हैं जो कथित रूप से उस वंश से संबंधित थे। इन 36 मुख्य कुलों में से कुछ को आगे चलकर शाख या "शाखाओं" में विभाजित किया गया है, जो फिर से पितृसत्ता के सिद्धांत पर आधारित है।





इन 36 मुख्य कुलों की जानकारी कुछ इस प्रकार हें:-
Surya
Chandra
Grahilote or Gehlote
Yadu or Yadawa
Tuar or Taunar
Rathore
Cushwaha or Kachhwaha
Chahuman or Chauhan
Chalook or Solanki
Pritihara or Parihar
Chowura or Chaura
Tak or Takshac
Jit
Hun or Hoon
Catti
Balla
Jhala or macwahana
Jaitwa or Jetwa or Camari
Gohil
Sarwya or Sariaspa
Silar or Sular
Dabi
Gor or Gaur
Dor or Doda
Gherwal
Birgoojur
Sengar
Sekerwal
Byce or Bais
Dahia
Joyha
Mohil
Nicoompa
Rajpati
Dahirya
Dahima



मुख्य कुलों की जानकारी :-


(गहलोत, सिसोदिया)

सिसोदिया/ गहलोत भारतीय राजपूत जाति में पाया जाने वाला एक गोत्र है, जिसका राजस्थान के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। सिसोदिया वंश (sisodiya dynasty) के शासक मेवाड़ पर शासन करते थे। मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ थी। सिसोदिया वंश के प्रमुख शासक रावल बप्पा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप इत्यादि थे।

बप्पा रावल ने चित्तौड़ के प्रसिद्ध दुर्ग पर अधिकार कर मेवाड़ में गुहिल वंश अथवा गहलौत वंश की स्थापना की।

सन् 556 ई. में जिस गुहिल वंश की स्थापना हुई, बाद में वही गहलौत वंश बना और इसके बाद यह सिसोदिया राजवंश के नाम से जाना गया।

सिसोदिया शब्द की उत्पत्ति शिसोदा गांव से हुई। तत्कालीन समय में राव रोहितास्व भील को पराजित कर करणसिंह ने आधिपत्य कर लिया और उसी गांव के आधार पर सिसोदिया शब्द प्रचलन में आया।

  • सिसोदिया वंश के शासक अपने को सूर्यवंशी कहते थे।
  • सिसोदिया वंश के शासक मेवाड़ पर शासन करते थे।
  • मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ थी।
  • अपनी विजयों के उप्लक्षय में विजयस्तम्भ का निर्माण राणा कुम्भा ने चित्तौड़ में करवाया।
  • खतोली का युद्ध 1518 ई० में राणा साँगा एवं इब्राहिम लोदी के बीच हुआ।
  • सिसोदिया राजपूतों की कुलदेवी बाणमाता है।
सिसोदिया वंश (गहलौत वंश) के शासक एवं उनके शासन काल :
  • रावल बप्पा  (734 – 753 ई.)
  • रावल खुमान (753 – 773 ई.)
  • मत्तट (773 – 793 ई.)
  • भर्तभट्त (793 – 813 ई.)
  • रावल सिंह (813 – 828 ई.)
  • खुमाण सिंह (828 – 853 ई.)
  • महायक (853 – 878 ई.)
  • खुमाण तृतीय (878 – 903 ई.)
  • भर्तभट्ट द्वितीय (903 – 951 ई.)
  • अल्लट (951 – 971 ई.)
  • नरवाहन (971 – 973 ई.)
  • शालिवाहन (973 – 977 ई.)
  • शक्ति कुमार (977 – 993 ई.)
  • अम्बा प्रसाद (993 – 1007 ई.)
  • शुची वरमा (1007- 1021 ई.)
  • नर वर्मा (1021 – 1035 ई.)
  • कीर्ति वर्मा (1035 – 1051 ई.)
  • योगराज (1051 – 1068 ई.)
  • वैरठ (1068 – 1088 ई.)
  • हंस पाल (1088 – 1103 ई.)
  • वैरी सिंह (1103 – 1107 ई.)
  • विजय सिंह (1107 – 1127 ई.)
  • अरि सिंह (1127 – 1138 ई.)
  • चौड सिंह (1138 – 1148 ई.)
  • विक्रम सिंह (1148 – 1158 ई.)
  • रण सिंह (कर्ण सिंह) (1158 – 1168 ई.)
  • क्षेम सिंह (1168 – 1172 ई.)
  • सामंत सिंह (1172 – 1179 ई.)
  • रतन सिंह (1301-1303 ई.)
  • राजा अजय सिंह (1303 – 1326 ई.)
  • महाराणा हमीर सिंह (1326 – 1364 ई.)
  • महाराणा क्षेत्र सिंह (1364 – 1382 ई.)
  • महाराणा लाखा सिंह (1382 – 1421 ई.)
  • महाराणा मोकल (1421 – 1433 ई.)
  • महाराणा कुम्भा (1433 – 1469 ई.)
  • महाराणा उदा सिंह (1468 – 1473 ई.)
  • महाराणा रायमल (1473 – 1509 ई.)
  • महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) (1509 – 1527 ई.)
  • महाराणा रतन सिंह (1528 – 1531 ई.)
  • महाराणा विक्रमादित्य (1531 – 1534 ई.)
  • महाराणा उदय सिंह (1537 – 1572 ई.)
  • महाराणा प्रताप (1572 -1597 ई.)
  • महाराणा अमर सिंह (1597 – 1620 ई.)
  • महाराणा कर्ण सिंह (1620 – 1628 ई.)
  • महाराणा जगत सिंह (1628 – 1652 ई.)
  • महाराणा राजसिंह (1652 – 1680 ई.)
  • महाराणा अमर सिंह द्वितीय (1698 – 1710 ई.)
  • महाराणा संग्राम सिंह (1710 – 1734 ई.)
  • महाराणा जगत सिंह द्वितीय (1734 – 1751 ई.)
  • महाराणा प्रताप सिंह द्वितीय (1751 – 1754 ई.)
  • महाराणा राजसिंह द्वितीय (1754 – 1761 ई.)
  • महाराणा हमीर सिंह द्वितीय (1773 – 1778 ई.)
  • महाराणा भीमसिंह (1778 – 1828 ई.)
  • महाराणा जवान सिंह (1828 – 1838 ई.)
  • महाराणा सरदार सिंह (1838 – 1842 ई.)
  • महाराणा स्वरूप सिंह (1842 – 1861 ई.)
  • महाराणा शंभू सिंह (1861 – 1874 ई.)
  • महाराणा सज्जन सिंह (1874 – 1884 ई.)
  • महाराणा फ़तेह सिंह (1883 – 1930 ई.)
  • महाराणा भूपाल सिंह (1930 – 1955 ई.)
  • महाराणा भगवत सिंह (1955 – 1984 ई.)
  • महाराणा महेन्द्र सिंह (1984 ई.) 


Kachwaha Dynasty ( कछवाहा वंश )

ऐसी मान्यता है कि कछवाहा रामचंद्र के ज्येष्ठ पुत्र कुश के वंशधर थे  सूर्यमल्ल मिश्रण के अनुसार किसी कूर्म नामक रघुवंशी शासक की संतान होने से ये कूर्मवंशीय कहलाने लगे और भाषा से उन्हें कछवाहा कहा जाने लगा, जो सूर्यवंशीय क्षत्रिय है



दुल्हराय – ढूढ़ाड़ राज्य की स्थापना
संस्थापक – दुल्हेराय
कुलदेवी – जमुवाय माता
आराध्य देवी – शिलादेवी
डॉ J.P स्ट्रेटन के कथन के अनुसार ढूढ़ाड़ शब्द से धूल भरा रेगिस्तान अभिव्यंजित है, जो दूर-दूर तक अपने शुष्क भू-भाग लिए फैला हुआ है

दुल्हराय ( दुलेराम ), ग्वालियर नरेश सोड़देव के पुत्र थे सोड़देव के पुत्र दुल्हराय का विवाह मौरा के चौहान शासक रालपसी की कन्या सुजान कँवर के साथ हुआ था


 
10 वी शताब्दी में दौसा नगर पर दो राजवंश चौहान राजवंश और बड़गुर्जर राज्य कर रहे थे, चौहान राजवंश ने अपनी सहायता के लिए ग्वालियर से अपने जमाता दुल्हराय को आमंत्रित किया

दुल्हराय ने कूटनीति से बढ़गुर्जरों को हराकर ढूढ़ाड़ का शासन अपने पिता सोड़देव को सौंप दिया। सोड़देव ने 996 ई. से 1006 ई. तक तथा दुल्हराय ने 1006 ई. से 1035 ई. तक ढूढ़ाड़ पर शासन किया

दुल्हेराय ने 1137 ई में दौसा पर अधिकार कर ढूढाड क्षेत्र में कछवाहा वंश की नींव रखी, दौसा कछवाहों की आरम्भिक राजधानी थी दौसा के पश्चात कछवाहा नरेशो ने जमवारामगढ़ को दूसरी राजधानी बनाया

कोकिल देव- इसने 1207 ई में मीणाओं से आमेर छीनकर आमेर को राजधानी बनाई जो जयपुर की स्थापना तक इनकी राजधानी रही।

झंडा एवं राज्य चिन्ह ( Flag and State Symbol )


जयपुर रियासत का झंडा पंचगंगा ( नीला पीला लाल हरा और काला) था इस झंडे के बीच सूर्य की आकृति है, यहां के राज्य चीन में सबसे ऊपर राधा गोविंद का चित्र है
नीचे राज्य का मूल मंत्र “यतो धर्मस्ततो जय:” लिखा है जिसका अर्थ है- ‘जहां धर्म है वहां सत्य की सदा जय होती हैं’!

कछवाहा वंश के शासक ( Ruler of Kachwah dynasty )
हणुदेव
जान्हड देव
पजवन देव
मालसी
बिजल देव
रामदेव
किल्हल
कुंतल
जुणसी
उदयकरण – इन्होने आमेर में शेखावाटी को मिलाया। इनके प्रपौत्र नरू द्वारा कछवाहा की नरूका शाखा चली। इनके अन्य वंशज बाला के पौत्र शेखा के वंशज शेखावत कहलाये। 
नरसिंह
उदरण
चन्द्रसेन
पृथ्वीराज – 1503 – 1527 ई – इन्होनें महाराणा सांगा की तरफ से खानवा के युद्ध मे बाबर के विरुद्ध भाग लिया था “बारह कोटडियो” की स्थापना के कारण कछवाहा वंश के इतिहास में इनका नाम प्रसिद्ध है।
पूर्णमल – 1527 – 1533 ई
भीमदेव – 1533 – 1537 ई
रतन सिंह – 1537 – 1548 ई –इनके चाचा सांगा ने सांगानेर की स्थापना की
भारमल  1548 – 1574 ई - राजस्थान के प्रथम राजपूत शासक थे जिन्होंने सबसे पहले अकबर मुगलों के साथ वैवाहिक संबंध कायम किए!
हरखूबाई:- भारमल की पुत्री, इतिहास में बेगम मरियम उज्जमानी के नाम से प्रसिद्ध हुई। इनका विवाह 1562 ई. में अकबर के साथ सांभर में हुआ। जहाँगीर इन्ही का पुत्र था।जोधा बाई एक ‘उपाधि’नाम है जो अकबर एवं जहाँगीर की पत्नियों में से मुख्य पत्नी को प्रदान किया जाता था।यह उपाधि के आसिफ द्वारा निर्देशित फिल्म मुगल-ए-आजम के बाद में अधिक प्रचलित हुई है।
भारमल की उपाधियाँ :- राजा, अकबर ने अमीर-उल-उमरा की उपाधि दीं।

भगवन्त दास  1574 – 1589 ई ) 
मानसिंह 1589 – 1614 ई:- मानसिंह का जन्म 6 दिसंबर 1550 को हुआ भगवंतदास की मृत्यु के बाद 14 नवंबर 1589 में आमेर का शासन उसके दत्तक पुत्र मानसिंह ने सम्भाला आमेर राजस्थान का प्रथम राज्य था जिसने मुगलों के साथ सहयोग और समर्पण की नीति अपनाई
अकबर नें मानसिंह को राजा की उपाधि दी। अकबर के नवरत्नों में से एक मानसिंह को अकबर ने उस का सर्वोच्च 7000 का मनसब प्रदान किया था | मानसिंह ने बंगाल एवं बिहार का सूबेदार बनकर मुगल सत्ता के विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया हिंदुस्तान का सबसे बड़ा मनसब 7000 और सबसे छोटा 10 मनसब|

भावसिंह 1614 – 1621 ई
मिर्जा राजा जयसिंह 1621- 67 ई
रामसिंह – 1667 – 1689 ई
बिशन सिंह – 1689 – 1699 ई
सवाई जयसिंह द्वितीय 1699 – 1743 ई
सवाई ईश्वरी सिंह 1743-50 ई
महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम 1750-68 ई
महाराजा पृथ्वीराज – 1868 – 1878 ई
सवाई प्रताप सिंह 1778-03 ई 
जगत सिंह द्वितीय 1803-18 ई 
सवाई जयसिंह तृतीय – 1818- 1835 ई
महाराजा रामसिंह द्वितीय 1835-80 ई 
महाराजा माधोसिंह द्वितीय 1880-1922 ई 
मानसिंह द्वितीय 1922-49 ई 
सवाई भवानी सिंह 

राठौड़ वंश:- 

राजपूतों के इतिहास में राठौड़ों का विशेष स्थान है। संस्कृत अभिलेखों, ग्रंथों आदि से राठौड़ों को राष्ट्रकूट लिखा है। कहीं-कहीं रट्ट या राष्ट्रोड भी लिखा है। राठौड़ राष्ट्रकूट का प्राकृत रूप है। चिन्तामणि विनायक वैद्य के अनुसार यह नाम न होकर एक सरकारी पद था। इस वंश का प्रवर्तक राष्ट्रकूट (प्रांतीय शासक) था।
राठौड़ अथवा राठौड एक राजपूत गोत्र है जो उत्तर भारत में निवास करते हैं। राठौड़ अपने को राम के कनिष्ठ पुत्र कुश का वंशज बतलाते हैं। इस कारण वे सूर्यवंशी हैं। वे पारम्परिक रूप से राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र मारवाड़ में शासन करते थे। इनका प्राचीन निवास कन्नोज में बदायू था। जहाँ से सीहा मारवाड़ में ई. सन् 1243 के लगभग आया। राजस्थान के सम्पूर्ण राठौड़ो के मूल पुरुष राव सीहा जी माने जाते है जिन्होंने पाली से राज प्रारम्भ किया उनकी छतरी पाली जिले के बिटु गांव में बनी हुई है। 

सीहा ने पहले पाली, पुत्र आस्थान ने खेडगढ़ पर जहा पहले डाभी और गोहील राजपूतो का राज था तथा उनके  वंशज चूण्डा ने मण्डोर पर और उसके पौत्र जोधा ने जोधपुर बसाकर वहाँ अपनी राजधानी स्थापित की। मुग़ल सम्राटों ने अपनी आधी विजयें ‘लाख तलवार राठोडान‘ अर्थात एक लाख राठोड़ी तलवारों के बल पर प्राप्त की थी क्योंकि युद्ध के लिए 50000 बन्धु बान्धव तो एक मात्र सीहाजी के वंशज के ही एकत्रित हो जाते थे। राठौड़ो का विरुद रणबंका है अर्थात वे लड़ने में बांके हैं। 1947 से पूर्व भारत में अकेले राठौड़ो की दस से ज्यादा रियासते थी और सैकड़ो ताजमी ठिकाने थे जिनमें मुख्य जोधपुर, मारवाड़, किशनगढ़, बीकानेर, ईडर, कुशलगढ़, सैलाना, झाबुआ, सीतामउ, रतलाम, मांडा, अलीराजपुर वही पूर्व रियासतो में मेड़ता, मारोठ और गोड़वाड़ घाणेराव मुख्य थे।  

राठौड़ वंश की कुलदेवी नागणेचिया माता:- 
राठौड़ो की कुलदेवी नागचेचियाजी है जिसका पहले नाम राठेश्वरी था। नागने चियाजी का पुराना मंदिर नागाना तहसील पचपदरा में हैं। दुसरा मंदिर जोधपुर के किले में जनानी ड्योढ़ी में हैं। गांवों में नागनेचियाजी का थान सामान्यतः नीम के वृक्ष के नीचे होता है। इसी कारण राठौड़ नीम का पेड़ काटते या जलाते नहीं हैं

राठौड़ वंश की शाखाएँ:–
धांधल, भडेल, धूहड़िया, हटडिया, मालावत, गोगादेव, महेचा, राठौड़, बीका, मेडतिया, बीदावत, बाल चांपावत, कांधलोत, उदावत, देवराजोत, गहड़वाल, करमसोत, कुम्पावत, मंडलावत, नरावत आदि।

राठौड़ों का प्राचीन इतिवृत :-
राम के पुत्र कुश के कुल में सुमित्र अयोध्या का अंतिम राजा था। नंदवंश के महापद्मनंद ने अयोध्या राज्य को मगध साम्राज्य में मिला लिया। सुमित्र के बाद यशोविग्रह तक के मुख्य व्यक्तियों के नाम ही बडुवों (बहीभट्टों) की बहियों से तथा अन्य साहित्यिक स्त्रोतों से प्राप्त होते हैं। अतः इन साधनों के आधार पर सुमित्र से आगे की वंश परम्परा दी जा रही है। सुमित्र के दो वंशजों में कूर्म के वंशज रोहितास (बिहार), निषिध, ग्वालियर और नरवर होते हुए राजस्थान में आये जो कछवाह कहलाते हैं। दूसरे वंशज विश्वराज के वंशधर क्रमशः मूलराय व राष्ट्रवर के नाम से इनके वंशज राष्ट्रवर (राठौड़) कहलाये। बाद के संस्कृत साहित्य में कहीं कहीं राष्ट्रवर (राठौड़ों) का संस्कृतनिष्ठ शब्द ‘राष्ट्रकूट’ या ‘राष्ट्रकूटियो’ भी लिखा है।

राठौड़ों की खांपें और उनके ठिकाने:-
1. ईडरिया राठौड़ :-
सोगन (पुत्र सीहा) ने ईडर में डाभी राजपूतो पर आक्रमण कर ईडर पर अधिकार जमाया। अतः ईडर के नाम से सोगन के वंशज ईड़रिया राठौड़ कहलाये। इसके पश्चात डाभी राजपूतो को ईडर के अधीन " रुद्रदी, कुशकी"  दो जागीरदी गयी।   (टॉड कृत राजस्थान-अनु केशवकुमार ठाकुर पृ. 356)

2. हटुण्डिया राठौड़ :-
सोगन के वंशज हस्तिकुण्डी (हटूंडी) में रहे। वे हटुण्डिया राठौड़ कहलाये। (अ) (टॉड) कृत राजस्थान-अनु. केशवकुमार ठाकुर पृ. 356) (ब) जोधपुर इतिहास में ओझा लिखते है कि सीहाजी से पहले हस्तिकुण्डी (हटकुण्डी) में राष्ट्रकूट बालाप्रसाद राज करता था। उसके वंशज हटुण्डिया राठौड़ है।

3. बाढेल (बाढेर) राठौड़ :-
सीहाजी के छोटे पुत्र अजाजी के दो पुत्र बेरावली और बिजाजी ने द्वारका के चावड़ों को बाढ़ कर (काट कर) द्वारका (ओखा मण्डल) पर अपना राज्य कायम किया।इस कारण बेरावलजी के वंशज बाढेल राठौड़ हुए। आजकल ये बाढेर राठौड़ कहलाते है। गुजरात में पोसीतरा, आरमंडा, बेट द्वारका बाढेर राठौड़ो के ठिकाने थे।

4. बाजी राठौड़ :-
बेरावलजी के भाई बीजाजी के वंशज बाजी राठौड़ कहलाते है। गुजरात में महुआ, वडाना आदि इनके ठिकाने थे। बाजी राठौड़ आज भी गुजरात में ही बसते है।

5. खेड़ेचा राठौड़ :-
सीहा के पुत्र आस्थान ने डाभी और गुहिलों से खेड़ जीता। खेड़ नाम से आस्थान के वंशज खेड़ेचा राठौड़ कहलाते है।

6. धुहड़िया राठौड़ :-
आस्थान के पुत्र धुहड़ के वंशज धुहड़िया राठौड़ कहलाते है।

7. धांधल राठौड़ :-
आस्थान के पुत्र धांधल के वंशज धांधल राठौड़ कहलाये। पाबूजी राठौड़ इसी खांप के थे। इन्होंने चारणी को दिये गये वचनानुसार पाणिग्रहण संस्कार को बीच में छोड़ चारणी की गायों को बचाने के प्रयास में शत्रु से लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की। यही पाबूजी लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं।

8. चाचक राठौड़ :-
आस्थान के पुत्र चाचक के वंशज चाचक राठौड़ कहलाये।

9. हरखावत राठौड़ :-
आस्थान के पुत्र हरखा के वंशज।

10. जोलू राठौड़ :-
आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र जोलू के वंशज।

11. सिंघल राठौड़ :-
जोपसा के पुत्र सिंघल के वंशज। ये बड़े पराक्रमी हुए। इनका जैतारण पर अधिकार था। जोधा के पुत्र सूजा ने बड़ी मुश्किल से उन्हें वहां से हटाया।

12. ऊहड़ राठौड़ :-
जोपसा के पुत्र ऊहड़ के वंशज।

13. मूलू राठौड़ :-
जोपसा के पुत्र मूलू के वंशज।

14. बरजोर राठौड़ :-
जोपसा के पुत्र बरजोर के वंशज।

15. जोरावत राठौड़ :-
जोपसा के वंशज।

16. रैकवाल राठौड़ :-
जोपसा के पुत्र राकाजी के वंशज है। ये मल्लारपुर, बाराबकी, रामनगर, बडनापुर, बैहराइच (जि. रामपुर) तथा सीतापुर व अवध जिले (उ.प्र.) में हैं। बोडी, रहका, मल्लापुर, गोलिया कला, पलवारी, रामनगर, घसेड़ी, रायपुर आदि गांव (उ.प्र.) में थे।

17. बागड़िया राठौड़ :-
आस्थानजी के पुत्र जोपसा के पुत्र रैका से रैकवाल हुए। नौगासा बांसवाड़ा के एक स्तम्भ लेख बैशाख वदि 1361 में मालूम होता है कि रामा पुत्र वीरम स्वर्ग सिधारा। ओझाजी ने इसी वीरम के वंशजों को बागड़िया राठौड़ माना जाता है (जोधपुर राज्य का इतिहास-ओझा पृ. 634) क्योंकि बांसवाड़ा का क्षेत्र बागड़ कहलाता था।

18. छप्पनिया राठौड़ :-
मेवाड़ से सटा हुआ मारवाड़ की सीमा पर छप्पन गांवों का क्षेत्र छप्पन का क्षेत्र है। यहाँ के राठौड़ छप्पनिया राठौड़ कहलाये। यह खांप बागड़िया राठौड़ों से ही निकली है। (जोधपुर का राज्य इतिहास-ओझा पृ. 134) उदयपुर रियासत के कणतोड़ गांव की जागीर थी। (राजपूताने का इतिहास प्रथम भाग-गहलोत पृ. 347)

19. आसल राठौड़ :-
आस्थान के पुत्र आसल के वंशज आसल राठौड़ कहलाये।

20. खोपसा राठौड़ :-
आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र खीमसी के वंशज।

21. सिरवी राठौड़ :-
आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र शिवपाल के वंशज।

22. पीथड़ राठौड़ :-
आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र पीथड़ के वंशज।

23. कोटेचा राठौड़ :-
आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र रायपाल हुए। रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र कोटा के वंशज कोटेचा हुए। बीकानेर जिले में करणाचण्डीवाल, हरियाणा में नाथूसरी व भूचामण्डी, पंजाब में रामसरा आदि इनके गांव है।

24. बहड़ राठौड़ :-
धुहड़ के पुत्र बहड़ के वंशज।

25. ऊनड़ राठौड़ :-
धुहड़ के पुत्र ऊनड़ के वंशज।

26. फिटक राठौड़ :-
रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र थांथी के पुत्र फिटक के वंशज फिटक राठौड़ हुए। (जोधपुर राज्य की ख्यात जिल्द 1 पृ 21 )

27. सुण्डा राठौड़ :-
रायपाल के पुत्र सुण्डा के वंशज।

28. महीपालोत राठौड़ :-
रायपाल के पुत्र महिपाल के वंशज। (दयालदास की ख्यात जिल्द 1 पृ 54 )

29. शिवराजोत राठौड़ :-
रायपाल के पुत्र शिवराज के वंशज। (दयालदास की ख्यात जिल्द 1 पृ 54 )

30. डांगी :-
रायपाल के पुत्र डांगी के वंशज। (दयालदास की ख्यात जिल्द 1 पृ 54 ) ढोलिन से शादी की अतः इनके वंशज डांगी ढोली हुए।

31. मोहणोत :-
रायपाल के पुत्र मोहण ने एक महाजन की पुत्री से शादी की। इस कारण मोहण के वंशज मुहणोत वैश्य कहलाये। मुहणोत नैणसी इसी खांप से थे।

32. मापावत राठौड़ :-
रायपाल के वंशज मापा के वंशज।

33. लूका राठौड़ :-
रायपाल के वंशज लूका के वंशज।

34. राजक :-
रायपाल के वंशज राजक के वंशज।

35. विक्रमायत राठौड़ :-
रायपाल के पुत्र विक्रम के वंशज। (राजपूत वंशावली -ईश्वरसिंह मढाढ ने रादां, मूपा और बूला भी रायपाल के पुत्रों से निकली हुई खांपें मानी जाती है। )

36. भोवोत राठौड़ :-
रायपाल के पुत्र भोवण के वंशज। (नैणसी भाग 2 पृ. 476)

37. बांदर राठौड़ :-
रायपाल के पुत्र कानपाल हुए। कानपाल के जालण और जालण के पुत्र छाड़ा के पुत्र बांदर के वंशज बांदर राठौड़ कहलाये। घड़सीसर (बीकानेर राज्य) में बताये जाते है।

38. ऊना राठौड़ :-
रायपाल के पुत्र ऊना के वंशज। (नैणसी भाग 2 पृ. 476)
39. खोखर राठौड़ :-
40. सिंहमकलोत राठौड़ :-
छाड़ा के पुत्र सिंहल के वंशज। अलाउद्दीन के सातलेक के समय सिवाना पर चढ़ाई की।

41. बीठवासा उदावत राठौड़ :-
रावल तीड़ा के पुत्र कानड़दे के पुत्र रावल के पुत्र त्रिभवन के पुत्र उदा के ‘बीठवास’ जागीर था। अतः उदा के वंशज बीठवासिया उदावत कहलाये। उदाजी के पुत्र बीरमजी बीकानेर रियासत के साहुवे गांव से आये। जोधाजी ने उनको बीठवासिया गांव की जागीर दी। इस गांव के अतिरिक्त वेगडियो व धुनाडिया गांव भी इनकी जागीर में थे। (मा. प. वि. भाग तृतीय पृ. 496)

42. सलखावत :-
छांडा के पुत्र तीड़ा के पुत्र सलखा के वंशज सलखाखत राठौड़ कहलाये।

43. जैतमालोत :-
सलखा के पुत्र जैतमाल के वंशज जैतमालोत राठौड़ कहलाये। (जो. राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ.184 ) ये बीकानेर रियासत में भी कहीं 2 निवास करते है।

44. जुजाणिया :-
जैतमाल सलखावत के पुत्र खेतसी के वंशज है। गांव थापणा इनकी जागीर में था।

45. राड़धडा :-
जैतमाल के पुत्र खींवा ने राड़धडा पर अधिकार किया। अतः उनके वंशज राड़धडा स्थान के नाम से राड़धडा राठौड़ कहलाये। (जो. राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ. 184 )

46. महेचा :-सलखा राठौड़ के पुत्र मल्लीनाथ बड़े प्रसिद्ध हुए। बाढ़मेर का महेवा क्षेत्र सलखा के पिता तीड़ा के अधिकार में था। वि. सं. 1414 में मुस्लिम सेना का आक्रमण हुआ। सलखा को कैद कर लिया गया। कैद से छुटने के बाद वि. सं. 1422 में अपने श्वसुर राणा रूपसी पड़िहार की सहायता से महेवा को वापिस जीत लिया। वि. सं. 1430 में मुसलमानों का फिर आक्रमण हुआ। सलखा ने वीर गति पाई। सलखा के स्थान पर माला (मल्लिनाथ ) राज्य  हुआ। इन्होनें मुसलमानों से सिवाना का किला जीता और अपने भाई जैतमाल को दे दिया व छोटे भाई वीरम को खेड़ की जागीर दी। नगर व भिरड़गढ़ के किले भी मल्लिनाथ ने अधिकार में किये। मल्लिनाथ शक्ति संचय कर राठौड़ राज्य का विस्तार करने और हिन्दू संस्कृति की रक्षा करने पर तुले रहे। उन्होंने मुसलमान आक्रमणों को विफल कर दिया। मल्लिनाथ और उसकी रानी रूपादे, नाथ सम्प्रदाय में दीक्षित हुए और ये दोनों सिद्ध माने गए। मल्लिनाथ के जीवनकाल में ही उनके पुत्र जगमाल को गद्दी मिल गई। जगमाल भी बड़े वीर थे। गुजरात का सुलतान तीज पर इकट्ठी हुई लड़कियों को हर ले गया तब जगमाल अपने योद्धाओं के साथ गुजरात गया और गुजरात सुलतान की पुत्री गींदोली का हरण कर लिया। (मारवाड़ का इतिहास प्रथम भाग पृ. 54 ) तब राठौड़ों और मुसलमानों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में जगमाल ने बड़ी वीरता दिखाई। कहा जाता है कि सुलतान की बीवी को तो युद्ध में जगह जगह जगमाल ही दिखाई देता था।
इस सम्बन्ध में एक दोहा प्रसिद्ध है
“पग पग नेजा पाडियां , पग पग पाड़ी ढाल।
बीबी पूछे खान नै , जंग किता जगमाल।।”
इसी जगमाल का महेवा पर अधिकार था। इस कारण इनके वंशज महेचा कहलाते है।

47. बाढ़मेरा :-
मल्लीनाथ के छोटे पुत्र अरड़कमल ने बाड़मेर इलाके नाम से इनके वंशज बाढ़मेरा राठौड़ कहलाये।

48. पोकरण :-
मल्लीनाथ के पुत्र जगमाल के जिन वंशजों का पोकरण इलाके में निवास हुआ। वे पोकरण राठौड़ कहलाये। नीमाज का इतिहास- पं. रामकरण आसोपा पृ. 4 क्ष. जा. सूची पृ. 22 )

49. खाबड़िया :-
मल्लीनाथ के पुत्र जगमाल के पुत्र भारमल हुए। भारमल के पुत्र खीमूं के पुत्र नोधक के वंशज जामनगर के दीवान रहे इनके वंशज कच्छ में है। भारमल के दूसरे पुत्र मांढण के वंशज माडवी (कच्छ) में रहते है वंशज, खाबड़ (गुजरात) इलाके के नाम से खाबड़िया राठौड़ कहलाये।

50. कोटड़िया :-
जगमाल के पुत्र कुंपा ने कोटड़ा पर अधिकार किया अतः कुंपा के वंशज कोटड़िया राठौड़ कहलाये। (जोधपुर राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ. 191 ) जगमाल के पुत्र खींवसी के वंशज भी कोटडिया राठौड़ कहलाये।

51. गोगादे :-
सलखा के पुत्र विराम के पुत्र गोगा के वंशज गोगादे राठौड़ कहलाते है। (जोधपार राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ. 195-197) केतु (चार गांव) सेखला (15 गांव) खिराज आदि इनके ठिकाने थे।

52. देवराजोत :-
बीरम के पुत्र देवराज के वंशज देवराजोत राठौड़ कहलाये। (जोधपुर राज्य का इतिहास प्रथम भाग ओझा पृ. 195-197) सेतरावों इनका मुख्य ठिकाना था।  सुवालिया आदि भी इनके ठिकाने थे।

53. चाड़देवोत :-
वीरम के पौत्र व देवराज के पुत्र चाड़दे के वंशज चाड़देवोत राठौड़ हुए। जोधपुर परगने का देछु इनका मुख्य ठिकाना था। गीलाकोर में भी इनकी जागीर थी।

54. जैसिधंदे :-
वीरम के पुत्र जैतसिंह के वंशज।

55. सतावत :-
चुण्डा वीरमदेवोत के पुत्र सत्ता के वंशज।

56. भींवोत :-
चुण्डा के पुत्र भींव के वंशज। खाराबेरा (जोधपुर) इनका ठिकाना था।

57. अरड़कमलोत :-
चुण्डा के पुत्र अरड़कमल वीर थे। राठौड़ो और भाटियों के शत्रुता के कारण शार्दूल भाटी जब कोडमदे मोहिल से शादी कर लौट रहा था, तब अरड़कमल ने रास्ते में युद्ध के लिए ललकारा और युद्ध में दोनों ही वीरता से लड़े। शार्दूल भाटी ने वीरगति पाई और कोडमदे सती हुई। अरड़कमल भी उन घावों से कुछ दिनों बाद मर गए। इस अरड़कमल के वंशज अरड़कमलोत राठौड़ कहलाये।

58. रणधीरोत :-
चुण्डा के पुत्र रणधीर के वंशज है। फेफाना इनकी जागीर थी।

59. अर्जुनोत :-
राव चुण्डा के पुत्र अर्जुन वंशज। (राजपूत वंशावली – ठा. ईश्वरसिंह मढाढ पृ. 82 )

60. कानावत :-
चुण्डा के पुत्र कान्हा वंशज कानावत राठौड़ कहलाये।

61. पूनावत :-
चुण्डा के पुत्र पूनपाल के वंशज है। गांव खुदीयास इनकी जागीर में था।

62. जैतावत राठौड़ :-
राव रणमलजी के जयेष्ठ पुत्र अखैराज थे। इनके दो पुत्र पंचायण व महाराज हुए। पंचायण के पुत्र जैतावत कहलाते है।

१.) पिरथीराजोत जैतावत :-
जैताजी के पुत्र पृथ्वीराज के वंशज पिरथीराजोत जैतावत कहलाते हैं। बगड़ी (मारवाड़) व सोजत खोखरों, बाली आदि इनके ठिकाने थे।

२.) आसकरनोत जैतावत :-
जैताजी के पौत्र आसकरण देइदानोत के वंशज आसकरनोत जैतावत है। मारवाड़ में थावला, आलासण, रायरो बड़ों, सदामणी, लाबोड़ी मुरढावों आदि इनके ठिकाने थे।

३.) भोपतोत जैतावत :-
जैताजी के पुत्र देइदानजी  भोपत के वंशज भोपतोत जैतावत कहलाते हैं। मारवाड़ में खांडों देवल, रामसिंह को गुडो आदि इनके ठिकाने थे।

63. कलावत राठौड़ :-
राव रिड़मल के पुत्र अखैराज, इनके पुत्र पंचारण के पुत्र कला के वंशज कलावत राठौड़ कहलाते हैं। कलावत राठौड़ों के मारवाड़ में हूण व जाढ़ण दो गांवों के ठिकाने थे।

64. भदावत :-
राव रणमल के पुत्र अखैराज के बाद क्रमशः पंचायत व भदा हुए। इन्हीं भदा के वंशज भदावत राठौड़ कहलाये। देछु (जालौर) के पास तथा खाबल व गुडा (सोजत के पास) इनके मुख्य ठिकाने थे।

65. कूँपावत :-मण्डौर के रणमलजी के पुत्र अखैराज के दो पुत्र पंचायत व महाराज हुए। महाराज के पुत्र कूंपा के वंशज कूँपावत राठौड़ कहलाये। मारवाड़ का राज्य जमाने में कूंपा व पंचायण के पुत्र जैता का महत्वपूर्ण योगदान रहा था। चित्तौड़ से बनवीर को हटाने में भी कूंपा की महत्वपूर्ण भूमिका थी। मालदेव ने वीरम को जब मेड़ता से हटाना चाहा, कूंपा ने मालदेव का पूर्ण साथ देकर इन्होंने अपना पूर्ण योगदान दिया। मालदेव ने वीरम से डीडवाना छीना तो कूंपा को डीडवाना मिला। (आसोप का इतिहास- रामकरण आसोप पृ. 26) मालदेव की 1598 वि. में बीकानेर विजय करने में कूंपा की महत्वपूर्ण भूमिका थी। शेरशाह ने जब मालदेव पर आक्रमण किया और मालदेव को अपने सरदारों पर अविश्वास हुआ तो उन्होंने  साथियों सहित युद्धभूमि छोड़ दी परन्तु जैता व कूंपा कहा धरती हमारे बाप दादाओं के शौर्य से प्राप्त हुई हैं हम जीवित रहते उसे जाने न देंगे। दोनों वीरों ने शेरशाह की सेना से टक्कर ली और अद्भुत शौर्य दिखाते हुए मातृभूमि की रक्षार्थ बलिदान हो गए। (राजस्थान का इतिहास-गोपीनाथ पृ. 324) उनकी बहादुरी से प्रभावित होकर शेरशाह के मुख से ये शब्द निकल पड़े “मैंने मुट्ठी भर बाजरे के लिए दिल्ली सल्तनत खो दी होती।”
इस प्रकार अनेक युद्धों में आसोप के कूँपावतों ने वीरता दिखाई।

66. जोधा राठौड़ :-
67. उदावत राठौड़ :-
68. बीका राठौड़ :- 
69. बीदावत राठौड़ :- 
70. मेड़तिया राठौड़ :-
72. चाँपावत राठौड़ :-
73. मण्डलावत राठौड़ :-
राव रिड़मल के पुत्र मण्डलाजी ने वि. सं. 1522 में सारूंडा (बीकानेर राज्य) पर अधिकार कर लिया था। यह इनका मुख्य ठिकाना था। इन्हीं मण्डला के वंशज मण्डलावत राठौड़ है।

74. भाखरोत :-
बाला राठौड़ – राव रिड़मल (रणमल) के पुत्र भाखरसी के वंशज भाखरोत कहलाये। इनके पुत्र बाला बड़े बहादुर थे। इन्होनें कई युद्धों में वीरता का परिचय दिया। चित्तौड़ के पास कपासण में राठौड़ों और शीशोदियों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में बाला घायल हुए। सिंघलों से वि. सं. 1536 में जोधपुर का युद्ध मणियारी नामक स्थान हुआ। इस युद्ध में चांपाजी मारे गए। बाला ने सिंघलो को भगाकर अपने काकाजी का बदला लिया। इन्हीं बाला के वंशज बाला राठौड़ कहलाये। मोकलसर (सिवाना) नीलवाणों (जालौर) माण्डवला (जालौर) इनके ताजमी ठिकाने थे। ऐलाणों, ओडवाणों, सीवाज आदि इनके छोटे छोटे ठिकाने थे।

75. पाताजी राठौड़ :-
राव रिड़मल के पुत्र पाता भी बड़े वीर थे। वि. सं. 1495 में कपासण (चित्तौड़ के पास) स्थान पर शीशोदियों व राठौड़ों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में पाताजी वीरगति को प्राप्त हुआ। इनके पातावत राठौड़ कहलाये। पातावतों के आऊ (फलौदी- 4 गांव) करण (जोधपुर) पलोणा (फलौदी) ताजीम के ठिकाने थे। इनके अलावा अजाखर, आवलो, केरलो, केणसर, खारियों (मेड़ता) खारियों (फलौदी) घंटियाली, चिमाणी, चोटोलो, पलीणो, पीपासर भगुआने श्री बालाजी, मयाकोर, माडवालो, मिठ्ठियों भूंडासर, बाड़ी, रणीसीसर, लाडियो, लूणो, लुबासर, सेवड़ी आदि छोटे छोटे ठिकाने जोधपुर रियासत में थे।

76. रूपावत राठौड़ :-
राव रिड़मल के पुत्र रूपा ने बीका का उस समय साथ दिया जब वे जांगल देश पर अधिकार रहे थे। इन्हीं रूपा के वंशज रूपावत राठौड़ हुए। मारवाड़ में इनका चाखू एक ताजीमी ठिकाना था। दूसरा ताजीमी ठिकाना भादला (बीकानेर राज्य) था। इनके अतिरिक्त ऊदट (फलौदी) कलवाणी (नागौर) भेड़ (फलौदी) मूंजासर (फलौदी) मारवाड़ में तथा सोभाणो, उदासर आदि बीकानेर राज्य के छोटे छोटे ठिकाने थे।

77. करणोत राठौड़ :-
राव रिड़मल के पुत्र करण के वंशज करणोत राठौड़ कहलाये। इसी वंश में दुर्गादास (आसकरणोत) हुए। जिन पर आज भी सारा राजस्थान गर्व करता है। अनेकों कष्ट सहकर इन्होनें मातृभूमि की इज्जत रखी। अपनी स्वामिभक्ति के लिए ये इतिहास में प्रसिद्ध रहे है।

78. माण्डणोत राठौड़ :-
राव रिड़मल के पुत्र मांडण के वंशज माण्डणोत राठौड़ कहते हैं। मारवाड़ में अलाय इनका ताजीमी ठिकाना था। इनके अतिरिक्त गठीलासर, गडरियो, गोरन्टो, रोहिणी, हिंगवाणिया आदि इनके छोटे छोटे ठिकाने थे।

79. नाथोत राठौड़ :-
नाथा राव रिड़मल के पुत्र थे। राव चूंडा नागौर के युद्ध में भाटी केलण के हाथों मारे गए। नाथाजी ने अपने दादा का बेर केलण के पुत्र अक्का को मार कर लिया। इन्हीं नाथा के वंशज नाथोत राठौड़ कहलाते हैं। पहले चानी इनका ठिकाना था।नाथूसर गांव इनकी जागीर में था।

80. सांडावत राठौड़ :-
राव रिड़मल के पुत्र सांडा के वंशज।

81. बेरावत राठौड़ :-
राव रिड़मल के पुत्र बेरा के वंशज। दूधवड़ इनका गांव था।

82. अडवाल राठौड़ :-
राव रिड़मल के पुत्र अडवाल के वंशज। ये मेड़ता के गांव आछोजाई में रहे। राव रिड़मल के पुत्र ;-

83. खेतसिंहोत राठौड़ :-
राव रिड़मल के पुत्र जगमाल के पुत्र खेतसी के वंशज। इनको नेतड़ा गांव मिला था।

84. लखावत राठौड़ :-
राव रिड़मल के पुत्र लखा के वंशज।

85. डूंगरोज राठौड़ :-
राव रिड़मल के पुत्र डूंगरसी के वंशज डूंगरसी को भाद्रजूण मिला था।

86. भोजाराजोत राठौड़ :-
राव रिड़मल के पौत्र भोजराज जैतमालोत के वंशज। इन्हें पलसणी गांव मिला था। (राव रिड़मल के पुत्र हापा, सगता, गोयन्द, कर्मचंद और उदा के वंशजों की जानकारी उपलब्ध नहीं। उदा के वंशज बीकानेर के उदासर आदि गांव में सुने जाते हैं )


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